ये सोच हमारे मस्तिष्क में भरी किसने नर-नारी में खाई बनाई किसने,
ये सोच उसने तो नही भरी जिसने हृणयगर्भ से हमे बनाया था फिर ये भेद किया किसने,
ये विष घोला किसने की जगतधारिणी का अस्तित्व उसी के अंश से छोटा है ये विचार विचार किसने,
ये सोच की केवल पुत्र ही कुलदीपक होता है इस सोच हो सत्य बनाया किसने,
ये किया किसने,
ये विभेद किया किसने?
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सिला-ए-दिलगि
Poesieलोग दिल से दिल लगा लेते है , सिला-ए-दिलागी में कई ज़ख्म दिल में पा लेते है, उसी दिलागी के कुछ पैगाम सुनो, मैने जो देखा उसका आंखों देखा सियाहीदा अंजाम सुनो, ये इश्कनाशी दिलगि का बेवफाई भरा अंजाम सुनो। so, namaste and hello I know I should translate t...