फिर क्यों

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फिर क्यों ये अल्फाज़ आपके लबों से मेहरूम है,
फिर क्यों ये लब गुप-चुप सिले हुए से है,

फिर क्यों ये लफ्ज़ काली स्याही से पर्दानशी है,

फिर क्यों जो आंखों में है और ज़ाहिर भी वो इन गुलाब से होटों से मेहरूम है,

फिर ये क्यों खामोशी में सवालों के कई शोर है,
फिर ये क्यों आपके अल्फाज़ लबों से मेहरूम है,

फिर क्यों आपके लब सिले सिले से है।

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