फिर क्यों ये अल्फाज़ आपके लबों से मेहरूम है,
फिर क्यों ये लब गुप-चुप सिले हुए से है,फिर क्यों ये लफ्ज़ काली स्याही से पर्दानशी है,
फिर क्यों जो आंखों में है और ज़ाहिर भी वो इन गुलाब से होटों से मेहरूम है,
फिर ये क्यों खामोशी में सवालों के कई शोर है,
फिर ये क्यों आपके अल्फाज़ लबों से मेहरूम है,फिर क्यों आपके लब सिले सिले से है।
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सिला-ए-दिलगि
Poetryलोग दिल से दिल लगा लेते है , सिला-ए-दिलागी में कई ज़ख्म दिल में पा लेते है, उसी दिलागी के कुछ पैगाम सुनो, मैने जो देखा उसका आंखों देखा सियाहीदा अंजाम सुनो, ये इश्कनाशी दिलगि का बेवफाई भरा अंजाम सुनो। so, namaste and hello I know I should translate t...