हसी तो

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तकदीर में गम तो सबके हजारों होते है उन्हे जो हंसकर जी जाए वो ही तो फांकर- ए -चमन सिकंदर-ए-सनी है,

हसी तो बहुत आती फन - ए - क़िताब-ए-तकदीर पे कैसे दो जहां के सुलाता को फकीरयत में झोंक दिया है,

हसी तो बहुत आती है ये देख की कसे उसने फूलों की सेज में कांटों को बोया है ,

हसी तो बहुत आती है ये देख की कसे उसने कांटों की सेज में फूलों को संजोया है,

हसी तो बहुत आती है ये देख की कसे उसने मेरे लिए खारे पानी तले अंगारों को बिछोया हैं ,

हसी तो बहुत आती है ये देख की कसे उसने ये तक सोचा की मुझे अगन भी लगे और चुभन भी हो,

हसी तो बहुत आती है ये देख की उसने ये भी सोचा साथ ही कोई मरहम भी हो और वो ही ज़ख्मों के गहरा होने का कारण भी हो।

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