मैं उसे

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मैं उसकी मासूमियत भरी भ्वो से मासूमियत चुरा उसे मानव जीवन के कटु सत्य से अवगत कराना चाहता हु,

मैं उसकी लज्जामयी नयनों से लाज चुरा उसे निर्लज जग के दोमुखी अवतार से अवगत कराना चाहता हूं,

मैं उसके भयभीत हृदय से भय चुरा उसे निर्भेक बन इस कठोर संसार से युद्धरत एक वीरांगना बनाना चाहता हूं,

मैं उसके संशय भरे मन से हर शंका का निवारण कर उसे संशय की तपन से मुक्त कर निश्चिंत करना चाहता हूं,

मैं उसे सावलंभी बनाना चाहता हु किंतु ये तो देवी स्वयं आप ही कर सकती है काश!आपको भी यही चाहत हो मैं बस यही चाहत हूं।

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